लीला मोहजीत
हमारी यह लीला ऐसे साध की है। जिनके यहाँ किसी प्रकार का मोह नही था नारद मुनि सभी कालो में सभी जगह भ्रमण करते है। एक बार नारद जी भ्रमण करते हुए मथुरा भगवान कृष्ण के यहाँ पहुँचे उन्हें देखकर भगवान कृष्ण ने बड़े आदर के साथ सोने के सिंहासन पर बिठाया और कुशल क्षेम पूछी तो नारद जी ने कहा कि महाराज मैंने सभी जगह घूम कर देखा है कि यह संसार मोह जाल में बंधा हुआ है तो भगवान कृष्ण ने कहा कि नारद जी ऐसी बात नही है। भले ही आपने सातदीप और नौऊखण्ड घूम लिए है। पर इस पृथ्वी पर ऐसे भी साध है। जिनके यहाँ किसी प्रकार का मोह नही है। जो नारद जी के मन में उनकी परीक्षा लेने की जिज्ञासा हुई और वहाँ से चल दिए। प्रस्तुत मोहजीत लीला इसका उदाहरण है
मथुरापुरी बृज धाम जहाँ नारद मुनि आये,
कनिक सिंहासन छत्र जहाँ ऋषि कू बैठाये।।
बैठि सभा में कहत हैं, सुनिये यादव राय,
ये संसार मोह ने बाँध्यो निर्मोही कोई नाय।।1।।
(कहत नारद जी)
जनै कृष्ण ने कही सुनौ नारद गुसाईं,
देखि लिए नौऊ खण्ड खबरि अब तक नाय पाई।।
याही जग में साध है। लियो न उनको भेद,
लोभ मोह उनके कछू ना है। गुप्त करत है सेब।।2।।
(कहत यों कृष्ण जी)
नारद को मन चपल कहो तो दर्शन पाऊँ,
आज्ञा देऊ महाराज साध की परीक्षा लाऊँ ।
साथ बड़े परमार्थी मोह जीत है नाम,
नारदगमन कियो उन माऊँ देखन उनके धाम।।3।।
(कहत नारद जी)
वहाँ से नारद चले भूप के बागन आये,
कलाकरी उन माहि भूप के पुत्र डसाये।।
बाग ही में आसन लियो दियो न किनहूँ भेद,
माली आपस मे कर जोड़े, कृपाकरी गुरुदेव।।4।।
(कहें नारद जी)
धन्य भूप के बाग सन्त अभ्यागत आये,
बैठि रहे गह मौन साध को भेष बनाये।।
माली सत से जीतिये बोलो वचन रसाल,
पानी पीऊँ न फल भंकू नृप सुत खाय लयौ काल।।5।।
(कहे नारद जी)
मेवा दाख अनूप जबै माली फल तोड़ै,
राजा के नाय शोक कहे माली कर जोड़े।।
सदाँ निवासी भूप है नाय संसय नाय शोक,
तुम हूँ शोक करो मति स्वामी यह फल कीजै भोग।।6।।
(कहे नारद जी)
माली मौति भई या ठौर भोजन हम कू नाय भावै,
राजवंश कौ नमक धर्म मेरौ घटि जावै।।
इतनी सुनिकै भूप कूँ खवर सुनाई जाय,
महामुनी साधू एक आयौ उपमा कही न जाय।।7।।
(कहत नारद जी)
जल भरनि चली पनिहारी और राजा की चेरी,
देखे सन्त अनूप उलटि कै पीठि न फेरी।।
तन मन से सेवा करी, कलशी धरी उतारि,
मौनी है गये मुख नाय खोलें मोह लयीं पनिहारि।।8।।
(कहे नारद जी)
अति अधीन पनिहार सन्त तेरी सेवा आईं,
लागि रही मन आश, पलक ते पलक न लाईं।।
चिन्ता बिछुड़ी भवन की करी एक मन सेव,
भूप भवन पग धारौ स्वामी कृपाकरो गुरुदेव।।9।।
(कहे नारद जी)
जब नारद मुनि कही सुनो राजा की दासी,
जाके सुत कौ शोक वहाँ हम नाहै जासी।।
मात-पिता को रूदन है, कहाँ करें विश्राम,
जिनकौ पुत्र काल ने खायौ सूने पड़े सुखधाम।।10।।
(कहे नारद जी)
स्वामी शोक कहौ कहा होय सुनाओ हम कू बानी,
राजा के नाय शोक, शोक माने नाय रानी।।
जैसे पंछी तरू बसै भोर भये उड़जाय,
ऐसे ही ये जगत है स्वामी शोक करे कोई नाय
जाके कछू न हानि ज्ञान मोय अधिक डढ़ावै,
जाकी शाखा कटै, सोई कलपै और दुख पावै।।
झूठी शाख न बोलिए काँपे सकल शरीर,
जातन मरम वही तन जाने जा तन हो है पीर।।11।।
(कहे नारद जी)
बहुत कही समझाय सुनो तपिया ब्रह्मचारी,
तीर्थ मेला होय आये हौ नर और नारी।।
मनः महात्मा है गयौ बिछुड़ि गयौ संयोग,
घाटि बाठिकूँ सबही चाले सब ही बटाऊ लोग।।12।।
(कहे नारद जी )
वहाँ ते नारद चले भूप के मन्दिर आये,
चन्दन छिड़की, पौरि जहाँ आसन बिछवाये।।
भूप भवन बिच पौरि में खड़े तपेश्वर ज्ञान,
कर जोरे भोजन दे भंेटे, आप करी प्रणाम।।13।।
(कहे नारद जी)
स्वामी सुफल भई ये पौरि, सुफल भये मण्डप द्वारी,
सुफल भयौ ये नगर, सुफल कूआ पनिहारी।।
माली में के सुफल है, आय सुनाये बैन,
दया करी ऋषि पग धारे, बोलो खोलौं नैन।।14।।
(कहे नारद जी)
बोले खोले नैन बैन भूपतिय सुनाये,
तेरे सुत कौ शोक भोजन हम कूँ नाय भाये।।
हम चलि आये दूरि ते देखन तुमरौ भाव,
तुमरौ पुत्र काल ने खायौ सो तुमरे ना है चाव।।15।।
(कहे नारद जी)
स्वामी जो सुत अपनो होय, काल कब हू नाय खावै,
धरता है आवै लैन नाम कौ, पुत्र कहावैं।।
पूत नही वह दूत था आय छयों दिन अन्त,
बाकूँ शोक कौन विधि कीजै बिछुड गयौ नःचत्त।।16।।
(कहे नारद जी)
तुम क्यों मानो नाय मात और पिताकहाओ,
जो इतने निर्मोहि काहेकूँ पौड़ि रचाओ।।
पक्षी सुत के कारने पड़े फन्द में आय,
जो ममता काहू साध नै छोड़ी तो वन में तपत्तो जाय।।17।।
(कहे नारद जी)
स्वामी कौन मात कौ पिता कौन को पुत्र कहावै,
जो जाकौ व्यौहार लिए बिन कबहूँ न जावै।।
खोटो खरौ जो मानिये नदी नाव संयोग,
घाटि वाढ़ि कू सबही चालें सब ही बटाऊ लोग।।18।।
(कहे नारद जी)
राजा तुम देखे निर्मोहि मोह छोड़ै नाय रानी,
उपजौ आप शरीर पीर वाही ने जानी।।
तुमरे भोजन नाय करुँ बिन देखे रनमास,
जिनकौ पुत्र काल ने खायौ, वो चोंन होय उदास।।19।।
(कहे नारद जी)
जब सतवन्ती नारि सबही दर्शन कूँ आईं,
सुत को कियौ न शोक शीश चरणन में लाईं।।
कर जोरैं विनती करै आदर करती लैन,
करि दण्डोत सबही यों बोली सुफल भये ये नैन।।20।।
(कहे नारद जी)
जब नारद मुनि कही सुनौ राजा की रानी,
तेरे सुत को शोक हमें भागवत बरकानी।।
हम चलि आये दूरि ते देखन तुमरौ भाव,
तुमरो पुत्र काल ने खायो सो, तुमरे मन ना है चाव।।21।।
(कहे नारद जी)
स्वामी ये जग सकल बजार सबही सौदा कू आयौ,
कोई गयौ धन खोय काहूँ ने द्रव्य कमायो।।
खोटौ खरौ जो मानिये अपने-अपने भाग,
नःचल नाम एक है स्वामी तू वाही तेलागि।।22।।
(कहे नारद जी)
जब नारद मुनि कही सुनौ बालक की माता,
तेरो पुत्र मरौ बेकाल दुःख तोय दियौ बिधाता।।
मात-पिता को रूदन है, बहुत ही भयौ अकाज,
यातें दुःख दूसरौ ना है सब दुखिया की लाज।।23।।
(कहे नारद जी)
स्वामी पिता सब न कौ एक जानें ये बाग लगायौ,
सोच करै का होय होत है उनको चाहो।।
अमर दुनिया में वो भयो जानेलियो ज्ञान भरपूर,
नाम बिना सब बद हैं, स्वामी अन्त धूरि की धूरि।।24।।
(कहे नारद जी)
जब नारद मुनि कही सुनो राजा की रानी,
तुम सुत जन्मौ नाय बात हम ने पहचानी।।
बडौ दुःख बाकू भयौ काल गयौ सिरताज,
बाते दुःख दोसरो ना है वा दुखिया की लाज।।25।।
(कहे नारद जी)
निरपति सुत की नारि सुनौ तपिया ब्रह्मचारी,
रवामिद सबकौ एक रखैगो लाज हमारी।।
काहेकँू संसय करो काहे करौ तुम शोक,
नाम आसरे पै नाय आये वृथा तुम्हारो जोग।।26।।
(कहे नारद जी)
जब नारद मुनि कही सुनौ तुम अबला नारी,
पिया बिन कैसो श्रृंगार पिया बिन धरती भारी।।
पिया बिना शोभा नही बहुत ही भयो अकाज,
बाते दुःख दोसरो नाहै तो दुखिया की लाज।।27।।
(कहे नारद जी)
स्वामी अकाज भयो जब जानि नाम हृदय ते छूटै,
काल अपर बल जानि सबैधर काऊ लूटै।।
ईश्वर की रचना रची, कौन करे तकरार,
करि व्यवहार सबही जग चालौ रहगयौ नाम अधार।।28।।
(कहे नारद जी)
जब नारद मुनि कही धन्य राजा की रानी,
सुत को कियौ न शोक साध की सेवा जानी।।
आया है जो जायेगा सिर ऊपर है काल,
उनसे भक्त कौन विधि छूटै जापै आप दयाल।।29।।
(कहे नारद जी)
धन्य भूप के महल जहाँ नारद मुनि आये,
भोजन करि ऋषिराज दया करि पुत्र जियाये।।
नारद मुनि वहाँ से चले सबन कियौ प्रणाम,
धन्य रे राजा धन्य री रानी धन्य तुम्हारे धाम।।30।।
(कहे नारद जी)
जवै कृष्ण से कही सन्त वो बड़े विवेकी,
जो तुमने कही सो भई, सोई आँखिन ते देखी।।
तन करि मन करि वचन करि करी एक मन सेब,
उनसे भक्त कौन विधि छूटै, कृपा करी गुरुदेव।।31।।
(कहे नारद जी)
सुनि नारद के वचन कृष्ण मन में हरषाये,
भक्त अपर बल जानि देखि नारद मुनि आये।।
मोह जीत की कथा समाप्त सुनों सभाधर ध्यान,
भूल चूक बाय माफ कीजिये मैं मूरख अज्ञान।। 32।।
(कहे नारद जी)