Bharthari Leela
भृतृहरि लीला
भारत वर्ष के मध्य प्रदेश में एक तीर्थ स्थल है जिसका नाम उज्जैन है। वहाँ पर राजा भृतृहरि राज्य करते थे इनके 1600 रानी थी पर इनकी पटरानी का नाम पिंगुला था जिससे यह विशेष प्रेम करते थे और वह भी सत्यनिष्ठ और पतिव्रता थी। एक दिन राजा शिकार खेलने गये तो वहाँ उन्होने कुछ आश्चर्य देखें और उन्हें रानी को आ कर बताया जिनको रानी ने नगन्य बताया और कहा कि पतिव्रता तो पति के निधन की सुनकर हँकारा के साथ अपने प्राण तज दे और परीक्षा लेने पर रानी ने ऐसा ही किया जिस पर भृतृहरि को ज्ञान का बाण लगा और जोग ले लिया जो इस लीला से विदित होता है।
कण्ठ सरस्वती सुमरि प्रेम आनन्द मनाऊँ।
मात-पिता गुरु नमन शीश सादन कूँ नवाऊँ।
आन बुद्धि प्रगट भई गुरु गणेश मनाय।
राज छोड़ि तप लयौ भृतृहरि, लाग्यो ज्ञान कौ बान।।1।।
राजा खेलन गयौ शिकार, जवै जंगल में आयौ।
झाड़ी माँही गयौ, वहां एक अचरज पायौ।
हिरना मारयौ पारधि, हिरनी मरी सनेह।
पारधिया विषयर डसि लियौ जम्बू कौन गुनेह।।2।।
जब राजा नै कही प्रभु तेरी अद्भुत माया।
जीव जीव कूँ खाय, जीव माया भरमाया।
एक मरंता द्वै मरे दो मरंता चारि।
चार मरंता छः मरे, चार पुरुष दो नारि।।3।।
राजा खेल शिकार, लौटि घर अपने आयौ।
तुम सुनौ पिगुँला नारि, एक अचरज मोहि पायौ।
अचरज एक ही देखिये, सुनों पिंगुला नारि।
अपनी काया काटि पुरुष पै तिरिया रही चढ़ाय।।4।।
जब रानी नै कही सत्त ऐसो नाय होई।
काया दीनी काटि, लाज परमेश्वर खोई।
सत्त नाहि यह जौहर राजा, सुनों भृतहरि राव।
सत्त बढुंगी वा तिरिया से हैकरि तजै प्राण।।5।।
राजा नै मन धरि लई, बात दोसरी नाय होई।
सुनो पिंगुला नारि, एक दिन जाँचू मैं तोई।
बहुत दिना राजा भये, खेलन गये शिकार।
अपने वस्तर सानि खून में भेजि दिये हथियार।।6।।
रानी करि सोलह सिंगार पेड़ चन्दन तर ठाड़ी।
राजा बूझयौ नाय, बात वा दिन की काड़ी।
चन्दन पेड़ मरन दै मोकूँ, काल पहुँचयौ आय।
हैकर प्राण तजे रानी नै, धरनि पड़ी मुरझाय।।7।।
बगदि टहलुआ चले पास राजा के आये।
तेरे महलन अचरज भयौ, काल बस रानीय खाये।
तें ऐसी जानी नांहि राजा सोचि न कीयौ काम।
राजा रानी दोनों जूझें, नगर भयो बेरान।।8।।
वहां ते राजा चल्यो पास रानी के आयौ ।
देखि पिंगला कौ रुप, बहुत मन में पछतायौ।
हाय विधाता का भई मैंने सोचि न कीयो काम।
राज तेज मेरौ सबहि बिगरि गयौ, सूने पड़े सुखधाम।।9।।
राजा हाय-हाय जब करै, रात और दिवस पुकारै।
राज पाट तजि दयौ, नाहि रनिवास सिधारै।
सात दिना राजा भये, गोरख पहुँचे आय।
गोरखनाथ हाथ करि ढीलो चीपी दयी छिट काय।।10।।
जब गोरख नै कही भृतृहरि काहे कूँ रोवै।
करि तिरियन ते नेह, नैन अपने क्यों खोवै।
गोरख नाथ गई तेरी चीपी, चीपी दै दऊँ चारि।
मेरौ रोनों कब कूँ रह गयौ, मेरी गई पिंगुला नारि।।11।।
राजा जोगी जती दिगम्बर दोनों बादें।
जोगी अगिम अपार, चतुर मति दोनों साधें।
कुम्हरा तो सब ही पचि हारे चीपी गढ़ी न जाय।
गोरखनाथ