Arti

आरती

यह आरती सतगुरु बाबा कायम कुँवर बाबा जी साहिब ने बाबा नितानन्द जी साहिब से ‘‘करामात
सौंपना‘‘ प्राप्त करते ही खड़े होकर बोली थी। अतः इसे सभी साध खड़े होकर बोलते हैं। शेष आरती

साधों द्वारा रचितहै, इसलिए इन्हें बैठकर बोलते हैं।

(1)

अब धन माल मिलाय दियाँ मेरा, चरण लगाय के चिताय दियौ चेरा ।।
अवगत के कछु औसत नाहीं, ज्ञान भण्डार भायौ है बहुतेरा ।।
साँचे ही साहिब को साँचै ही सौदा, दिल मालिक पिया दिल ही में हेरा ।।
सतगुरु साहिब दर्शन दीनों, नौ मन सूत भयौ है सुरझेरा ।।
कायम कुँवर जी की सुनियों वीनती, देखत मिट्यौ साहिब सकल अँधेरा ।।
अब धन माल मिलाय दियौ मेरा चरण लगाय के चिताय दियौ चेरा ।।

(2)

नौऊ नौऊ नाड़ी बहत्तर कोठा ।
नख शिख से निरबाहनियाँ ।।
काया नगर में प्रण पिन्ड भरियो ।
सांचे साहिब कूं सुमिरौ तुम साइयाँ ।।
चैसठ योगिन नगर पुर में तौ ।
धार मंगल गावैं सरस्वती ।।

अपने साहिब जी पै चैर दुराऊं
मैं तो करूं रे साहिब त्यारी आरती सतगुरु आरती।
सतयुग में राजा प्रहलाद सुमिरौ
पांच करोड़ से ऊबरियाँ

लै होलिका गोदी संग बैठी।
अगनि ज्वाल से ऊबरियाँ ।। 1… चैसठ

त्रेता में राजा हरिश्चंद सुमिरौ ।
सात करोड़ से ऊबरियो ।
तारा, कुमर, हरिचंद बिकाने।
नीच घराँ जल उन भरियो ।। 2… चैसठ

द्वापर में राजा युधिष्ठिर सुमिरौ ।
नौई करोड से ऊबरियौ
भूज्यौ है अम्ब दियौ दुर्योधन
सत्य कला अव परिहरियौ ।। 3… चैसठ

कलियुग में राजा बलि सुमिरौ
बारह करोड़ से ऊबरियौ
लै झाडी राजा संकल्प कीनौ ।
वामन बनकर बलि छलियौ ।। 4… चैसठ
सतयुग त्रेता द्वापर कलियुग ।
तेतीसौ मेला मिलियो
दोऊ कर जोर दिवायच बोले
इन साधन देउ अमरापुर
हां जी साध गये अमरापुर ।। 5… चैसठ

(3)

आरति त्यारी हो, साहिब मोहि आरती त्यारी हो।
या तन कौ दिवला करूँ, मनसा करूँ बाती हो।
तेल संजोऊँ मैं प्रेम कौ जारुँ दिन राती हो।।1।।

सेजरिया बहुरंगिया, पिया पौप विछाई हो।
बाट जो जोहूँ मैं साहिबा, पिया अजहूँ न आये हो।।2।।
लागौ है सावन भादवाँ, वर्षा ऋतु आई हो।
भाव बदरिया ऊमड़ी, नैनन झर लाग्यौ हो।।3।।
पाटी जो पाऊँ मैं प्रेम की बुधि मांग संवारूँ हो।
अपने पियाजी के कारने धन जीवन वारूँ हो।।4।।
साँचे ही मिल गये साहिबा, साँचों सुख दीनों हो।
मीरा विरहुल व्याकुली, अपनी करि लीनौ हो।।5।।
साहिब मोहि आरति त्यारी हो..

(4)

आरति संध्या सुमिरै जोई, सुमिरन करत महाफल होई।।
पहली आरति परम प्रकाशा, कर्म-भरम की कीजै नाशा।।
दूजी आरति देवल देवा, साध संगति मिलि कीजै सेवा।।
तीजी आरति त्रिगुण सूझै, गुरुगम ज्ञान अगोचर सूझै।।
चैथी आरति चैथे पद पावें, सतगुरु मिलें परम सुख पावें।।
पाँचवीं आरति पाँचों निर्वाहन, कहें जी कबीर हंसा लोक संवाहन।।
आरति संध्या सुमिरै जोई, सुमिरन करत महाफल होई।।

(5)

कहा लैके आरती दास करें जी

सकल भवन में त्यारी ज्योति जलें जी, सहस्त्रभानु त्यारे नख की शोभा।
कहा भयौ कर दीप धरें जी, सात समुद्र त्यारे चरण बिराजें।
कहा भयौ जल कुंभ भरें जी, बारह मास वनस्पति फूलें।
कहा भयौ सिर फूल घरें जी, अनन्त कोटि त्यारे अनहद बाजें।
कहा भयौ झालर झनकारें, आरति करें नर ऐसे ही ऐसे।

ध्रुव प्रहलाद विभीषण जैसे।।

आरति करें नर ऐसे ही ध्यावें अवगत के गुण नामदेव गावें।।