अर्जी
(१)
सबलदास सतगुरु तुम धनी, साहिब अरज सुनो हमारी धनी।
साहेब तुम क् तो ऐसी चाहिए, इन सादन पार लगाइये।
ज्यों त्यों कर मोय राखियो, धनी चित सूं तो मत ही बिसारियो।
तुम कूं तो मेरी सरम है, धनी पार उतारोगे धर्म है।
साहिब त्यारी तलफ सूं ऊबरे, धनी उनके तो कारज सब सरे।
अजी तुम गुरू हो ग्वाली करो, धनी ओगुन हृदय मति धरो।
सांचा के तुम संग रहो, धनी झूठा से तुम दूर रहो।
साध खेमू पढ़े त्यारे दरश की, वंदा तलफ करो सारी सखी।
(2)
मेरी सरम तुम सूं रहे, साहिब मेरी सरम तुम सूं रहे।
परमारथ को कोई एक वंदा, अपनी-अपनी सब कहें, |
जुग दरियाब अथग जल ओड़ो, नाव निरवाहो तो निवेह।
कोई एक वंदा पचि-पचि हारयो, तो लौ लागी रहे।
मैं बंदा गरीब गुलाम तिहारो, धुर निरवाहो तो निबेह।
भौपति साध सबल जू की सरना, जुग टूटी लागी रहे।
(3)
कौन डारे छरी, मेरे साध पे कौन डारे छरी।
फर केई उड जाय जैसे, बिरछ पैते चिरी।
देत्यन मारि इन्साफ करसी, कला परघटी घनी।
अड्सठ तीरथ चरण साध के, रिद्ध सिद्ध हुजूर खडी।
साध भूपत्ति शबद बोलयो, महर सतगुरु करी।
(4)
अये बाबा जो जन जो निरमाय, शरण त्यारी (टेक )
अपने की इज्जत तुम ही राखो, घोर अंधेरों भयो जाय। ।
पंछी चुगे चेत बृक्ष मांहि, तो बासो लीनो है आय। 2
साहिब ऐक सखी बहुतेरो, किन राख्यो मिल मांहि। 3
पूत कपूत तो होता ही आया, कबहू न मांय दुमांय। 4
पतिब्रता पति संग संग डोले, मन बिसरौ नाय जाय। 5
गढ़ सरबादा सुसबला नगरी, बासो लीनों है आय। 6
खोजत बूझत बन बन डोले, तो साहिब मिलियो आय। 7
जहीं जहीं भीर पड़ी है सादन पै, ऊपर कीन्हों हो आय। 8
भोपति साध सवल जू की सरना, तो भौ से लियो हूँ बचाय। 9
(5)
धनी म्हारे तो पार उतारि, विष को तो भरियो पापी पारधी |
अब दीजो जी म्हाने दादि, मेलो मड़ायो मंझा देस मे 2
भूलि गया जी सब जीव, कोई येक सांमत सादु उवारियो 3
म्हारे जी थ्यारो छे: ध्यान, सांचे कू सुमरत बंदा मैं रहू 4
अखन कुमारी पति साहि, जिनि के तो सुमिलत बन्दा मैं रमू 5
काहू विरला के बेंद बबेख, सबपे तो भाई माया फिरि रही 6
धनी म्हारे भालो लीयो छे; हाथ खुरीया कराबे घोड़ा सेतले 7
साद खेमू री अरदास, धनी म्हाने दरसन दीजियो 8