आगम
(1)
महर भई सतगुरु मिले जिनने भेद बताया
नरहर गुरू की थरपना।
जम्बू दीप बनाया गढहु परवता से साकती।
आलम गुरु आया, सतगुरु आया।
सेत घोड़े पाखर मणी, सोरन जीन धराया।
ले चाबुक सतगुरू चढौ, पूरब लै धाया। नरहर गुरु….।
मंजलि मंजलि डेरा दियो, गहरा तम्बू तनायौ।
अन्न पानी साधन लिया, निगुरा लेन न पाया।
ऊँचे चढ़ चढ़ जोहिये गहरा बंव बजाया।
सात समद रीझे नही, जाकी थाह न पाया।
सेत घोड़े पाखर मणी तोरन अधिक बनाया।
कन्या कुमारी कायम परनला जुग चैथे ही पाया।
कल में कालिग बाबा भानसी देंतन घर आया।
आगिम भवानी साद बोलिये सतगुरू फरमाया।
गढ़हु परवता से साकती।
(2)
बनवे मालिन सुमरो बनवारी अबके मोर बाँधि
धनि आयौ सतगुरु आया जी।
भाई किस दिन मेलो मांठ करेला
और कौन तिहारे परनल आवहो।
कौन साहिब त्योर जान चढेला,
और कौन मरद अगमानी हो।
तेतीस करोर तिहारी जान चढ़ेला,
हनुमान अगमानी हो।
कौन साहिब त्यारे आंगन बुहारै,
और कौन भरे जल पानी हो।
पवन साहिब तारौ अंगन बुहारै,
राजा इन्दर भरे जल पानी हो।
भूमि पजारि भूप लेसी डेरा,
और परनैल अखिन कुमारी हो।
मेघा रे कौन घर तोरन पलानी,
और कामिनि कलश भरासी हो।
कार्तिक मास पूनो दिन फेरा,
राजा नहकलंक वींद कहासी हो।
कौन सी मालिन कौन बनवारी,
कौन पुरूष कौन नारी हो।
आगिम पंडित दिवायच भाखै,में तो सतगुरु सरन तिहारी हो।