Prameshwer ki Leela

परमेश्वर की लीला

(2)
सारे प्राणी रहें जमी पर रहते नहीं गगन चर क्यों ?
हरियल छोड़ गए पृथ्वी को गज के मस्तक गोहर क्यों ?
दिये परिन्दो का पग तूने चमकादड दई बेपग क्यों ? कोयल के बच्चों को कागा पाले हैं अपने घर क्यों ?
रैन बना दई है सोने को चकबी रोवै रैन भर क्यों ?
सोवे पोदना रेन खुशी से ऊपर पैर तलेसर क्यों ?
प्यासी मरे टटीरी हंसा बिन मोती मर जाते क्यों ?
सभी सिंहनी असल केहरी जने फकत एक ही नर क्यों ?
पैदा होते सब रास्ते ये दीना बचा गोखर क्यों ?
करकेंटा क्यों रंग बदले गोली सभीजा सूअर क्यों ?
सबको जिम्हा दीनी मेढ़क बिना जीभ कर दीना क्यों ?
कान सर्प को क्यों नही दीने सिर में दई मणीधर क्यों ?
खबर मनुष को नहीं गर्भ की जाने सभी जानवर क्यों ?
पेट गांठ दे दई चींटी के रे नैनन बिन तरसाई।
श्री भगवान…

(3)
शशि रवि सब तारे चलते चलता नहीं ध्रुव तारा क्यों ?
हिन्नी पैना तीन जेठ में लेते नहीं उभारा क्यों ?
सूरज तारे शशि पै घटै-बढ़े हरबारा क्यों ?
सदा चांदनी संग समुद्र के घंटे-बढ़े हरवारा क्यों ?
एक समुद्र एक पार फिर सात रंग लहराता क्यों ?
भारतण्ड की पूरब से पश्चिम को बहती धारा क्यों ?
गंगाजल को पीते हैं फिर किया समुन्दर खारा क्यों ?
सबका तो आकर बना दिया, मछली बिन आकार के क्यों ? दबे कुए का बतला देवे, बकरी भेड़ किनारा क्यों ?
कस्तूरी का हिरन रात-दिन डोले मारा मारा क्यों ?
हाथी की दुम छोटी सी मेढ़ा दुख पावे बिचारा क्यों ?
मरा हुआ बंदरी को बच्चा लगता है फिर प्यारा क्यों ?
प्राण गवांदै क्यों चन्दा कूँ खाय चकोर अंगारा क्यों ?
दिया बत्ती तेल नहीं करता सदैव उजियारा क्यों ?
मोर विषय क्यों नहीं करता है, ये रोवे दुखदाई ।
श्री भगवन तुमने…

(4)
गर्भवती को सर्प देखकर अंधे भी हो जाते क्यों ?
पेड़ों में फिर प्यारा चन्दन माथे इसे चढ़ाते क्यों ?
नाग पौनिया क्यों जाय लिपटे भूखे प्राण गंवाते क्यों ?
रोई क्यो फर्रास फलों को फल उस पर नहीं आते क्यों ?
फल गूलर पर लाखों आते फूल नहीं फिर आते क्यों ?
अमरबेल सूखै पृथ्वी पर और पेड़ लहराती क्यों ?
जड़ पत्ते फल नहीं आवें फिर अमर इसे बतलाते क्यों ?
बन्दा क्यों न्यारा पृथ्वी से और पेड़ दुखियाते क्यों ?
खिले दुधारा नहीं दिन में जब देखा फूल शरमाते क्यों ?
केला और केतकी फैलकर अपनी देह कटाते क्यों ?
छुई मुई को छूते ही फिर पत्ते भी मुरझाते क्यों ?
मेंहदी मे क्यों है लाली नरनारी इसे रचाते क्यों ?
सब गुल की न्यारी खुशबू है, गुल सबके मन को भाते क्यों ?
सब मेवा का स्वाद निराला, खाकर लोग बताते क्यों ? लगजाता क्यों भेदभाव दुनिया मे धक्के खाते क्यों ?
माया अपनी नहीं दिखलाती तो लोग तुम्हें फिर गाते क्यों ? राम बकस यों माली कहता धन्य तेरी प्रभुताई। श्री भगवन तुमने अदभुत सृष्टि रचाई