Raja Mordhwaj Katha

लीला मोरध्वज

राजस्थान प्रान्त में एक स्थान है जिसका नाम मोरामालवा है। वहाँ पर औंकार नाथ नाम के राजा बड़े घमण्डी थे इसलिए उन्हें बेसलदास कहते थे, उनके 7 बालाऐं थी। उन्होंने एक दिन अपनी सभी कन्याओं से पूछा कि वह किसके भाग्य का खाती है तो 6 पुत्रियों ने कहा कि पिताजी आपके भाग्य का खाती हैं परन्तु छोटी पुत्री पद्मावती थी जो उन्हें सबसे अधिक प्रिय थी। भरी सभा में कहा कि पिताजी मैं तथा यह सभी दरबारी अपने-अपने भाग्य का खाते हैं तो राजा इस पर बहुत नाराज हुए और आज्ञा दी कि इस लड़की के लिए ऐसा वर तलाश कर लाओ जो अपना पेट तक न भर सके जो इस लीला से विदित है

पूछै माई बाप पूछै नंगर को भाई है
तू भाग्य कौन के खाय राव बेसल की जाई है
बार-बार तो ते कहूँ तू सुनियो राजकुमारि
पदमा बेटी लाडली रे तू भाग्य कौन के खाय
(सुनो मोर की महिमा)

अब तुम सुनौ सभाधरि ध्यान राम त्यारी ऐसी महिमा है।
अरे पिताजी राज पाट भर ज्योति सबै भगवत की लारा है।
और बड़ौ हमारौ भाग्य नाय हम तुमरे सहारा है।
जो मेरे मस्तिक लिखी और सोई साई दरबार।
पदमा बेटी लाड़ली तो भाग्य आपने ही खाय
(सुनो मोर की)

कोप्यौ बेसल राव मनायो क्रोध उपायो है।
बाली हम बाली भेज तुरत ही वर ढुंढवायौ है।
बोले नेगी बामनारे कहाँ भटकते जाय।
या कन्या के कारने रे वर लाओ तत्काल।
(सुनो मोर की)

विप्र जो लाये मोर राव कू बात सुनाई है।
और राजा के अहंकार रात भर नींद न आई है।
बोले नेगी वामनारे विलंब न लाओ वार।
राजा मुख ते यो कहें रे याय बेगिदेऊ परनाय।
(सुनो मोर की)

देखि मोर की जुगति हाथ में दौल चराई है।
और बहमाता अन्कूर मिटै नाय रति और राई है।
आलोगीलो बाँस कटाऔ चैकी देऊ मढ़ाय।
ब्रहमा वेदी यों कहे रे यापै धरौ सेहरौ लाय।
(सुनो मोर की)

रचै कुमार को ब्याह सखी जुरि मंगल गावै हैं।
ब्रहमा वेदी पढै कुमरि के फेरे लावें हैं।
ब्याह कुमार को है गयो और याय बिदा करदेऊ
राजा मुखते यो कह रे याय मिलौ मति कोय
(सुनो मोर की)

कारो करि देऊ रूप कारे दोऊ बैल जुराओ हो।
मति कोई जाओ संग मती कोई राह बताओ हो।
बागन में को केवड़ो और वृक्षन को सरदार।
राजा के मुख ते उतरी तो दई मोर के लार।
(सुनो मोर की)

सुनियौ मोर कुमार एक बेर मुख ते बोलो।
नाय रुठौ हमरो स्वामी क्यौं न तुम अन्तर खोलो।
हमें तुम्हें नही अन्तरा और रतियन ऊपर जान
सूरजभान तो भान है रे मोय बड़ेन की आन ।
(सुनो मोर की)

उड़िकै सारंग मोर धरनि जंगल में आयौ है।
मंैनेकियो अगोचर पाप सोत भरि पहले ही पायौ है।
या वस्ती में चुगो करूँ ना आय करूँ ना चैन।
मैं तो वासी गगन मंडल को काऊ तरवर पै काटुंगौ रैन।
(सुनो मोर की)

मोरा उड़े उड़ान कुमरि पाछे ते धायी है।
और इत उत देखत जाय राम ते सुरति लगाई है।
कोस दसक पै मिलि गयौ और वहीं पहुँची जाय।
कर जोरै बिनती करै रे सहज-सहज बतराय।
(सुनो मोर की)

अमिय बूँद आकाश आप नारायन लायौ है।
मानुष को कियौ ब्यौहार ज्योति ते अण्ड उपायौ है।
माता पिता बनजौ नहीं और कियो न कुल व्यौहार।
सुदी नाम सुद नाम कोरे नाय बनत लगी नाय वार
(सुनो मोर की)

शंकर धरि गये ध्यान मोर को मरद बनायौ है।
और माथे धरि दयो हाथ फेरि वो साद कहायो है।
कहै सुनै अमिया तजै ओर तजतन आवै लाज।
कहें शंकर सुनि मोरध्वज राजा तोय दयौ तेरे सुसर को राज
(सुनो मोर की)

अरे नारदा किन दियो उपदेश भगत को भेद बतायौ है।
और ओंकार अहंकार इन्द्रासान आप हिलायौ है।
इन्द्रासन थिरकी भरे याह थिरतन आवै वार।
मृत लोक संसार कूँ रे होउ नारदा त्यार।
(सुनो मोर की)

कन्धा झोरी हाथ नारदा आप पधारे है।
गुरु शरण में जाय शीश अपने उद्दारे हैं।
डण्डा झोरी हाथ में और आसन दियौ लगाय।
अन्न देह देही कौ राजा जो माँगे सोई पाय ।
(सुनो मोर की)

सकल नगर कौ लोग संग राज के आयौ है।
नवि-नवि के दण्डोत शीश जाय चरण नवायौ है।
शील सन्तोष छोड़े नहीं और ब्रहम ज्ञान हृदय धरे।
भजि भगवन्त विलंब नाय कीजै बिन करनी कौन तरै ।
(सुनो मोर की)

कहै नारदा सुनियो साहिब देखे सन्त अनूप अलख घर सेवत है। सतवादी है मोर, मुकुट वाह सोहत है।
नारद मुनि साँची कहै कोई मति जानो रीस।
सुरमुनि देव सब ही वाह जानै आप जानि जगदीश।
(सुनो मोर की)

अरे नारदा रोगी मिलिगों तोय मिलो कोई दुखिया भारी है।
साद जानिकै साद टहल तेरी खूब विचारी है।
आज्ञाकारी नारदा यही हमारौ भाव।
घर-घर भटकत को फिरै तुम यम दूत लैजाउ ।
(सुनो मोर की)

हंसा मगना गाय पार तेरौ नाय पायौ है।
लियौ रतनाकर सोख घात घत बहुत कमायौ है।
रावण मारि लंकपुर जारौ दियो विभीषण राज।
सब देवन की बन्दि छुडाय दई तेने सीता कू दीयौ बनवास।
(सुनो मोर की)

कन्चन दीने दान करण दाँतार तुराये हैं।
स्मरण कियो न ज्ञान ध्यान बैकुण्ठ पठाये हैं।
अधिक प्रीति पन्डन करी दये हिबारे गार।
भीष्म पितामह द्रोणाचार्य तैने दये बाण ते मार।
(सुनो मोर की)

सादन आगे बात नारदा जाय सुनाई है।
तुम सुनो स्वर्ग के लोग देव ने बुरी विचारी है।
सत्य बडौ संसार में धन साधू जग माहि
एक घड़ी कू आप ही चालो वहाँ यम के दूत नाय जाय।
(सुनो मोर की)

सूरा जूझे खेत सती घर देह जरावै है
पति अपने के काज सुहाग ले स्वर्ग सिधारे है
सत्य बड़ौ संसार में धन साधू जग माहि
पतिवर्ता के जोवन नाहै लोकाकार नाय जाय
(सुनो मोर की)

पापी दुष्टी चोर राज मेरे में नाहै।
आक धतूरौ अम्ब भुम्मि को भेद बतावै है।
आक जो लागे डोरिया नहीं रे अम्ब है जाय।
सच ओर सोनो साँच कू याय नित उठि लीजै ताय।
(सुनो मोर की)

एक भगत के काज गुरु जी आप ही चाले हैं।
लियो डिगम्बर टोप सिंह गल पाखर डाले हैं।
नारद मुनि लारे लिए और शंकर सिंह अनूप।
मोरध्वज घर बँटे रे बधाई देखें है सन्त अनूप।
(सुनो मोर की)

सकल नगर को लोग संग राजा के आयौ है।
नवि-नवि के दण्डौंत शीश जाय चरण चढायौ है।
हाजिर हूँ नाजिर नहीं तीन देह तैयार।
अन्न देह देही कौ राजा जो मागै सोई पाय।
(सुनो मोर की)

हसि बूझै हुसियार भुक्क नाहर कूँ लाऔ हो।
अबड़ो खींचै शीश राज पै वारन लाऔ हो।
कैमो भीडो डीकरौ, कै राजा के नारि।
उत्तमदान यही है राजा कै जइयो सतहार।
(सुनो मोर की)

जब रानी ने कही राज मैंने बहुत कमायौ है।
सरबस दऊँ मैं वारि राज पै आंच न लाऔ है।
नैम धर्म सन्मुख रहै मैं देंति न मोडू अंग।
पटरानी बहु तेरी राजा हमें बलि देऊ निसंग।
(सुनो मोर की)

जबै रतन ने कही पिता एक सुनौ हमारी है।
राज पाट भर ज्योति रतन यह सकल तुम्हारी है।
मै बालक जानू नहीं ऊँच नीच के काज।
सिंह बलि हम कूँ देऊ पिताजी आप करौ थिर राज।
(सुनो मोर की)

कौन मात कौ पिता कौन कौ पूत कहावै।
जो जाकौ संयोग लिये बिन कबहू न जावै।
कौन मात को पूत है और कौन पिता कौ पूत।
बन्दौ जग में उलझि रहयौ है जैसे कच्चै सूत।
(सुनो मोर की)

करि स्नान और ध्यान सबै संगई लै आयौ ।
नवि-नवि कै दण्डौत शीश जाय चरण चढ़ायौ ।
हाजिर हूँ नाजिर नहीं तीन देह तैयार।
अन्न देह देही को राजा जो मांगे जोई पाय।
(सुनो मोर की)

मात पिता के बीच कुँवर पै करो चलायौ।
हित ते खँचे मात प्रीत ते पिता चलाऔ।
खासी कुत्ता कागला कै रूठि आयौ वीर।
मात-पिता के मध्य कुमर की फार परी दो चीर।
(सुनो मोर की)

खाई बाँयी फार फार दाँई नाय खाई
कायर कॉपी देह भगत कूँ दाग लगाई।
खासी कुत्ता कांगला बिगडिगयौ तेरौ काम
मुख ते नाम भजौ नाय बेटा श्रवण सुनौ नाय नाम।
(सुनो मोर की)

जब रानी ने कही पाप कोई पिछलौई आयौ ।
घर कौ वैरीपूत भगत कूँ दाग लगायौ ।
नूर गमाय दयौ देह कौ मैं जनिकै है गई बाँझ।
गुरु कारज सारौ नाय बेटा चलौ जमानौहार ।
(सुनो मोर की)

धरनि पींजरा परौ हंस स्वर्गा में डोलै।
सुर मुनि बैठे देव सिंहासन रह गयौ ओलै।
यहाँ क्यों आयौ बावरे वहीं तुम्हारौ तन्त।
मृत लोक में सती सुनौ है वहीं गये भगवन्त ।
(सुनो मोर की)

धरनि पीजरा परौ जबै वो रतन जो बोलौ ।
मैं जो गयौ सत हारि क्यों न सत तुमने तोलौ ।
शंकर आये भाव करि और करि मन्सा ढार
त्रिलोकी त्रिगुण है बैठे मति जइयो सतहार ।
(सुनो मोर की)

मोरध्वज आय गयौ सांच जबै वानै खरग सम्हारौ।
तीन देह को त्याग नाहर के आगे डारौ।
शंकर उठे असंख्य धुनि गुरु उठि पकरौहाथ।
सबही साध निबल है बैठे सबलदास तेरी जात।
(सुनो मोर की)

मांगि मोरध्वज माँगि आज मेरी कृपा तोपै
का माँगू महाराज कमी कुछु ना है मोपै।।
राजा रानी सकल कुमर ने पूजे त्रिगुण राय ।
कल युग पहरौ बरति रहौ है या करौत है देऊ उठाय।
(सुनो मोर की)

माँगि मोरध्वज माँगि आज मेरे मनभायौ ।
तीन लोक कौ नाथ आज तेरे घर आयौ ।
भगति वॉस को खेलिवौ ओर निर्दयी कौ दाव।
लाला लगुन लिखी साहिब ते नहचै भजौ हरिनाम।
(सुनो मोर की)