Mahaprasad ki vani

-: महा प्रसाद की वाणी :-


( पूर्णमासी का महत्व )

संवत् 1187 की चैत्र सुदी चैदस (व्रत पूर्णिमा) दिन शनिवार को राजस्थान राज्य के जनपद सीकर में
खडेला रियासत के निवासी भोपति साथ, खेमू साध, रुस्तम साथ व सामल साथ ने आकाश मार्ग में
एक दिव्य विमान देखा, जिसमें अजन्मा सतगुरु बाबा सबलदास साहिब सिंहासन पर विराजमान थे,
उनके परम शिष्य सतगुरु बाबा नितानंद साहिब चैवर दुला रहे थे। चारों साधों ने बाबा साहिब मात्र से
ही उन्हें परख आ गई और विनम्र एवं श्रद्धाभाव से घर चलने का आग्रह किया तब बाबा साहिब ने
कहा हम निगुरा के यहाँ जल भी ग्रहण नहीं करते तो उन सभी ने अपने को सैन भगत के वंशज
और सत के अनुयायी बताया। बाबा साहिब ने कहा कि हमारी शरण में आने के लिये हमारे बचनों का
पालन करना होगा। तभी हमारे कृपा पात्र होंगे। तब चारी साधों ने आज्ञा का पालन कर वचन दिया।
सतनामी साध धर्म पत्थर पूजा, मूर्ति पूजा, अन्य व्रत उपवास, यज्ञ, अन्य साधना, अवतारी गाथाएँ एवं
प्रयोजनमूलक अनुष्ठान आदि को जीवन के वास्तविक तथ्यों एवं मानव के मौलिक स्वभाव के
अनुमूल नहीं मानता है। यहाँ साघों की साधना निर्गुण साधना है। साधों के सतनाम बाबाजी साहिब के
नाम का निरन्तर भाव बनाये रखने हेतु पूर्णमासी को उपवास, सत्संग ध्यान करने और सतनामी साध
धर्म सतगुरु द्वारा रुकनपुर जिला बुलन्दशहर एवं विविध सतनामी चैकियों में आयोजित मेलों में
सम्मिलित होने का आदेश दिया है। सर्वत्र सभी साध एकत्रित होकर पूर्णमासी को मनाते हैं। मंत्र दीक्षा
एवं संस्कार कार्य भी सम्पन्न होते हैं। प्रसाद तैयार किया जाता है। दीक्षित साधों को दिया जाने
वाला। प्रसाद महा प्रसाद व अन्य साधों को दिया जाने वाला प्रसाद कहा जाता है। महाप्रसाद व प्रसाद
वाणी बोलकर तैयार किये जाते हैं।
उल्लेखनीय बात यह है कि सतगुरु दर्शी सन्तों व साधों के कलियुग के मध्यकाल में 1344 वर्ष के
लिये सतयुग आने का अपनी वाणियों में वर्णन किया है। इस सतयुग के उपरान्त पुनः कलियुग यानी
कलियुगी वृत्तियों चोरी, हिंसा, अन्याय, मर्यादा, उल्लंघन कदाचार, व्यभिचार आदि का बोल वाला होगा।
घोर कलियुग में निःकलंक बाबा साहिब के नाम से अवगत मेहरवान की प्रथम इच्छा सतगुरु बाबा
सबलदास साहिब प्रकाश लेकर दानव कालिंगा का वध करेंगे तथा सारे मानव समाज को साक्षात दर्शन
देकर उनका कल्याण करेंगे। इसलिये आदिकाल से सभी साध प्रत्येक पूर्णमासी को खड़े होकर अवगल
मेहरवान से वाणी बोलकर अर्जी लगाते हैं और तदनन्तर प्रसाद ग्रहण करते हैं।

महाप्रसाद की वाणी

अब घर आया हो सांचा धनी, म्हारे तीनों भँवर रौ राजा।
अब घर आया हो साँचा धनी-टेक।

बाटलरी त्यारी जोहूँ साहिबा, खिदमति करस्या चार।
दिना चार दिन करते साहिबा, बीत गये युग चार।।1।।
अब घर आया……….

पहले तुम्हारी जाति जब मिले और दूजे कुलरी जाति।
तीजे धनेरो देहरौ कोई मिलसी नर सचियार।।2।।
अब घर आया………

आवेगी कोई ब्रह्म बादली, बरसेगा जल पूरा।
साध धनीरा सदा सहेला देत मरेला दूजा।।3।।
अब घर आया………..

पानी में पायकला सुमरै, स्वर्ग में सुमरै देवा।
मृत्युलोक में साधू सुमर, करें निर्मली सेवा।।4।।
अब घर आया………………

अष्टपरवती बाट जोहै, छियानवें कोटि मेघमाला।
अखिन कुमारी बाट जोहै, हाथ लिये वरमाला।।5।।
अब घर आया…………….

करे दिवायच बन्दगी तुम निःकलंक लेउ परगास।
घोड़े चढ़ो तुम सेतले सब साध लिये श्रृंगार।।6।।
अब घर आया…