Bandigi

बन्दिगी

निःकलंक बन्दिगी हो जामें कालिंग रहे न कोई।
सांची बन्दिगी हो जामें कालिग रहे न कोय। टेक

नेक जहाँ निःकलंक बसे हो, साधो भाई कला जहाँ परगास ।
सदा दहेली आनंद घना, विनके वाणी सबद विलास ।।

जिनके दिल में दोसरी हो, जिनके अन्दर नाहै हेत ।
यही कमठ कालिंग का हो, जिनसू कैसे कहिये नेक ।।

एक कनक और कामिनी हो, साधो और परायौ माल ।
इतने सूं बच ना भला, बाको काँई करसी कासी ।।

वासी पूरव देश को हो, जिनने लीयो शब्द पहचान ।
शब्द पहचान सनमुख भयो हो, जिने छाँडी दिल की वान ।।

सूरज आगे उजालौ कौन काहो, साधो भाई अनेक महतम होय ।
किरण सवाई धनी सवल कीहो, जायै गाजि न सके कोय ।।

पार बिना पानी नहीं हो साधो पानी बिना न पार ।
सांच बिना साधू नहीं हो, कोई कोढ़ा मंझे नारि ।

एक नगर गैला घना हो, साधो समझो सूधी राह ।
कोई कुबुधि लूटयौ चैघटे हो, साधो सरह पहुंचै जाय ।।

एक नगर मैला घना हो, साधो समझो सूधी राह ।
कोई कुबुधी लूटयौ चैधटें हो, साधो भोपति सरै पहुचों जाय ।।